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श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती

Hridayagatha
Hridayagatha
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काश मैं होता जल निर्मल,
तुम निर्झर सरिता होती,
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
मैं तन्हा होता अकेला सा,
तुम भी तन्हा होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
खमोशी फैली होती फिज़ाओं में,
तुम भी खामोश होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
काश खुशबु बहती हवाओं में,
तुम सुंगंध पहचान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
ह्रदय मेरा पर्वत विशाल,
तुम भी पत्थर दिल होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
चर्चा इश्क का गली-गली,
काश हाल-ए-दिल तुम जान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !

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